
26 और 27 मई को ज्येष्ठ अमावस्या है, इस तिथि पर ही शनि देव प्रकट हुए थे। ज्योतिष में नौ ग्रह बताए गए हैं, इन नौ ग्रहों में शनिदेव को न्यायाधीश माना जाता है, यानी ये ग्रह हमारे कर्मों का फल प्रदान करता है। शनि न्यायप्रिय और अनुशासनप्रिय देवता हैं, इसलिए इनकी कृपा आसानी से नहीं मिलती है। पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर 26 मई और कुछ जगहों पर 27 मई को शनि जयंती मनाई जाएगी।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शनि, सूर्यदेव और छाया के पुत्र हैं। यमराज इनके भाई और यमुना इनकी बहन हैं। शनिदेव की दृष्टि तेज और तीव्र मानी जाती है। माना जाता है कि शनिदेव को इनकी पत्नी ने शाप दिया था कि शनि की नजर जिस पर पड़ेगी, उसका अमंगल हो जाएगा, इसीलिए शनि पूजा में इनकी आंखों को नहीं देखना चाहिए।
शनिदेव उन लोगों के लिए विशेष रूप से शुभ फलदायक होते हैं जो मेहनती होते हैं, जीवन में अनुशासन और नैतिकता बनाए रखते हैं, दूसरों का सम्मान करते हैं, धर्म और कर्तव्य का पालन करते हैं, ऐसे व्यक्ति शनिदेव की कृपा के पात्र बनते हैं और उनके जीवन में स्थायित्व व उन्नति आती है।
शनि की पूजा में ध्यान रखें ये बातें….
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि शनिदेव को समर्पित है और इस दिन विशेष पूजा-पाठ करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है। शनि का तेल से अभिषेक करें। सरसों का तेल शनिदेव को अर्पित करें, ध्यान रहे कि शनिदेव को चढ़ाए हुए तेल पर किसी का पैर नहीं लगना चाहिए।
ज्येष्ठ अमावस्या पर पीपल और बरगद की पूजा करें, जल चढ़ाएं और परिक्रमा करें।
इस तिथि पर शमी वृक्ष की भी पूजा करनी चाहिए। शनि पूजा में शमी के पत्तों भी जरूर रखें। काले तिल और पुराने चमड़े के जूते-चप्पल दान करें।
शनिदेव के सामने सरसों तेल का दीपक जलाएं। शनि मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम: का जप करें। हनुमान जी की पूजा करें और सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
वर्तमान में शनि मीन राशि में स्थित हैं। इस कारण: कुंभ, मीन और मेष राशियों पर साढ़ेसाती का प्रभाव है। सिंह और धनु राशियों पर ढय्या चल रही है।
शनिदेव हमारे कर्मों का हिसाब रखने वाले ग्रह हैं। ये ग्रह हमें आत्म अनुशासन, संयम और परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं। यदि जीवन में स्थायित्व, समृद्धि और मानसिक शांति चाहिए तो शनिदेव की उपासना के साथ ही धर्म के अनुसार कर्म करें, गलत कामों से बचें।