इंदौर…

बता दें कि किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिलता है तो उसे पढ़ाई पूरी करना जरूरी है। यदि छात्र या छात्रा किसी कारण से पढ़ाई बीच में छोड़कर सरकारी कॉलेज में सीट खाली करना चाहते हैं तो इसके ऐवज में उसे 30 लाख रुपए जमा करना होता है। तभी उसे ओरिजनल दस्तावेज वापस मिल सकते हैं। यह प्रावधान केवल सरकारी कॉलेजों के लिए है।
ताजा मामले में भी ऐसा हुआ लेकिन छात्रा की ओर से जो दलीलें दी गईं, उसके चलते उसे राहत मिली है। हाई कोर्ट को यह जानकारी दी कि छात्रा खुद की इच्छा से सीट नहीं छोड़ना चाहती थी बल्कि सरकारी व्यवस्था के कारण वह नहीं पढ़ पाई है।
हाईकोर्ट में छात्रा के वकील आदित्य संघी ने बताया ‘छात्रा वर्तमान में मध्य प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग में नरसिंहपुर जिले में मेडिकल ऑफिसर के पद पर है। वह MD रेडियोथैरेपी भी करना चाहती थी इसके लिए उसे सरकारी MGM कॉलेज इंदौर आवंटित हुआ था। उसे एडमिशन लिया और मप्र सरकार का कर्मचारी होने के नाते उससे पढ़ाई के लिए NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मांगा। मप्र सरकार ने आवेदन के दो साल बाद भी NOC नहीं दी। इस बीच ही जिस कोर्स के लिए एडमिशन मिला था, वह पूरा हो गया। यानी वह पढ़ ही नहीं पाई। ऐसी परिस्थिति में छात्रा जिम्मेदार नहीं मानी जा सकती।’
हाई कोर्ट ने छात्रा की ओर से दिए तर्क से सहमत होते हुए पक्ष में फैसला दिया। एमजीएम काॅलेज इंदौर से कहा कि वह छात्रा से बिना 30 लाख रुपए जमा कराए ही उसे अपने ओरिजनल दस्तावेज वापस करे।’
वकील का कहना है कि यह संभवत: पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने 30 लाख रुपए के सीट छोड़ने के बांड के प्री-पीजी नियमों को अल्ट्रा वायर्स के रूप में चुनौती दी। इससे मप्र के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और पीजी पाठ्यक्रम के हजारों छात्रों को राहत मिल सकती है।
2 साल तक पढ़ाई के लिए किया एनओसी मिलने का इंतजार
याचिकाकर्ता डॉ.अदिति धुर्वे हैं। उन्हें 2022 में एमजीएम कॉलेज इंदौर में MD रेडियोथेरेपी की सीट आवंटित हुई। दस्तावेज जमा किए। डॉ.अदिति 2021 से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नरसिंहपुर में मेडिकल ऑफिसर के रूप में पदस्थ थीं।
नियमानुसार, वह सरकारी नौकरी के साथ पढ़ाई के लिए CMHO नरसिंहपुर और आयुक्त लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग भोपाल से NOC लेना जरूरी है। दो साल के इस कोर्स के लिए उसे आखिरी तक अनुमति नहीं मिली थी।
पढ़ाई नहीं कर सकी तो डॉक्यूमेंट मांगे
जब NOC नहीं मिलने पर पढ़ाई नहीं कर सकी तो वो अपने मूल दस्तावेज लेने के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज गई, जो एडमिशन के दौरान उसने डीन को जमा कराए थे। यहां प्री पीजी नियमों के अनुसार 30 लाख रुपए की मांग की कॉलेज की तरफ से की गई। कॉलेज प्रबंधन ने 3 मई 2024 को उसे मूल दस्तावेज वापस करने से लिखित रूप से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट में दी नियम को चुनौती
इसके बाद उसने इंदौर हाई कोर्ट में 20 मई 2024 को याचिका लगाई। नियम को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत बताते हुए चुनौती दी।
याचिकाकर्ता डॉ.अदिति के वकील आदित्य संघी की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने डॉ. अदिति को अंतरिम राहत दी है। 30 मई 2024 को एमजीएम मेडिकल को निर्देश दिया कि कॉलेज को 30 लाख रुपए के बिना मूल दस्तावेज लौटाने होंगे। साथ ही PS मेडिकल एजुकेशन भोपाल, नेशनल मेडिकल कमीशन, कमिश्नर हेल्थ, डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन, भोपाल, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का नोटिस भी जारी किया गया है।
नियम के रिव्यू के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन लिख चुका है लेटर
दरअसल, जनवरी 2024 में संसद में पीजी सीटों में सीट छोड़ने के बंधन के मुद्दे पर चर्चा हुई और गंभीर चर्चा के बाद भारत में चिकित्सा शिक्षा के मूल निकाय नेशनल मेडिकल कमीशन ने निर्णय लिया कि सभी राज्यों को सलाह दी जाती है कि वे मेडिकल छात्रों से अत्यधिक धन वसूलने के अपने फैसले की समीक्षा करें।
यदि वे पाठ्यक्रम पूरा किए बिना एमबीबीएस या पीजी सीटें छोड़ देते हैं, लेकिन फिर भी एमपी प्री पीजी नियमों में कहा गया है कि 30 लाख रुपए का भुगतान किया जाएगा, तभी छात्र को मूल मार्कशीट और अन्य मूल दस्तावेज वापस किए जाएंगे या उसे मूल दस्तावेज वापस नहीं किए जाएंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने ये नियम 19 जून 2019 को बनाया था।