भाप में उबलता है दूध, तब बनता है ये पेड़ा शुद्ध….
‘सांची’ का पेड़ा इतना सॉफ्ट है कि मुंह में जाते ही घुल जाता है। हर रोज इसकी क्विंटलों से खपत है। शहर ही नहीं, पूरे प्रदेश में इस पेड़े की डिमांड है। सांची का पेड़ा सिर्फ दूध और शक्कर से तैयार किया जाता है। इसके अलावा इसमें कुछ नहीं मिलाया जाता लेकिन बनाने की जो तकनीक है, वह सिर्फ फैक्ट्री में काम करने वाला स्टाफ ही जानता है। मसलन, दूध को कितने तापमान में कितनी देर उबालना है…शक्कर कब डालना है और कब तक उसे पकाना है। इसके लिए कर्मचारियों को बकायदा ट्रेनिंग दी गई है। चलिए, हम यहां बताते हैं कि पेड़ा बनकर आप तक पहुंचता कैसे है।
बड़ी कढ़ाही में उबलता है 120 किलो दूध…. दूध को गाढ़ा होने तक लगातार उबाला जाता है….
दूध से पेड़ा बनने तक की प्रोसेस भी अलग है। आपने होटल, रेस्टोरेंट पर देखा होगा कि मिठाई बनाने के लिए दूध को आग की भट्टी में उबाला जाता है, लेकिन सांची फैक्ट्री में यह स्टीम यानी भाप में उबाला जाता है।
120 किलो दूध को 200 किलो कैपेसिटी वाली बड़ी कढ़ाही में उबालने के लिए रखा जाता है। फिर शुरू होती है, दूध से पेड़ा बनने की प्रोसेस। दूध को भाप में इतना उबाला जाता है कि वह मात्रा में आधे से भी कम रह जाता है। फिर टेस्ट के अनुसार शक्कर मिलाई जाती है। लगातार 3 घंटे तक कर्मचारी दूध और शक्कर को मिक्स करते हैं। इस मिक्सचर से ही पेड़ा तैयार होता है।

वैक्यूम से ऑक्सीजन निकालते हैं, फिर गैस भरते हैं
आखिरी प्रोसेस होती है, पेड़े की पैकेजिंग करने की। इस काम को इतनी सावधानी से किया जाता है कि यह 1 महीने तक सुरक्षित रखा जा सके। पेड़े की ऑक्सीजन को वैक्यूम के जरिए बाहर निकाल देते हैं और फिर जरूरी गैसें मिलाई जाती हैं, जो पेड़े को सुरक्षित रखने में कारगर होती है।
यदि पैकेट को बिना खोले रखा जाए तो पेड़ा 30 दिन तक खाने के लिए सुरक्षित रह सकता है, लेकिन पैकेट खुलने पर 2 दिन के अंदर पेड़े काे उपयोग में लाना होता है।
पैकेट पर होती है सारी जानकारी
पेड़ा कितने दिन तक सुरक्षित रह सकता है, यह पैकेट पर लिखा होता है। पैकेजिंग के बाद पैकेट को सांची पार्लर तक पहुंचाया जाता है। भोपाल में 15 डिस्ट्रीब्यूटर और 700 से ज्यादा सांची पार्लर हैं, जहां आपको सांची का पेड़ा आसानी से मिल जाता है। पेड़ा दो साइज के पैकेट में मिलता है, 250 ग्राम और 500 ग्राम। 250 ग्राम के पैकेट की कीमत 115 रुपए और 500 ग्राम के पैकेट की कीमत 220 रुपए है।
डिमांड के अनुसार होता है प्रोडक्शन
खास बात यह है कि फैक्ट्री में डिमांड के अनुसार ही पेड़ा बनाया जाता है, जिस दिन जितनी डिमांड होती है, उतना ही बनाया जाता है। डिस्ट्रीब्यूटर से रोज की डिमांड डेटा लेकर फैक्ट्री में भेजा है, उसी हिसाब से पेड़े का प्रोडक्शन होता है।

पशुपालकों से ही लेते हैं पेड़े के लिए दूध
पेड़ा बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाना वाला दूध पशुपालकों से ही लिया जाता है। इसके लिए कंपनी में हर जिले में सोसाइटी बनाई गई हैं जो सीधे किसानों से कनेक्ट रहती हैं। भोपाल में ऐसी करीब ढाई हजार सोसाइटी हैं जो दूध कलेक्ट कर फैक्ट्री में पहुंचाती हैं। ये दूध गाय का होता है।
त्योहारों में बढ़ जाती है डिमांड, दीवाली पर सबसे ज्यादा
पेड़े की डिमांड त्योहारों पर ज्यादा बढ़ जाती है। दीवाली पर तो फैक्ट्री में 24 घंटे तक काम चलता है और पेड़ा बनाकर डिस्ट्रीब्यूटर तक पहुंचाया जाता है। अभी रोज की डिमांड के अनुसार, 200 से 300 किलो पेड़ा तैयार किया जाता है। दीवाली पर यह आंकड़ा 30 टन तक पहुंच जाता है। इसके अलावा रक्षाबंधन, होली, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, नवरात्रि, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि पर भी पेड़े की खासी डिमांड रहती है।
कर्मचारियों को बकायदा दी जाती है पेड़ा बनाने की ट्रेनिंग….
प्रदेश के हर जिले में डिमांड
पेड़े की डिमांड भोपाल ही नहीं MP के कई जिलों में है। भोपाल के रहने वाले राजेंद्र कुमार जैन बताते हैं कि भोजन के बाद नियमित रूम से मुंह मीठा जरूर करते हैं और इसके लिए वो हर रोज सांची का पेड़ा ही खाते हैं। सांची पार्लर के नंदकिशोर वर्मा ने बताया- भोपाल से मुंबई, दिल्ली तक पेड़ा भेजते हैं। त्योहारों में सबसे ज्यादा ग्राहकी पेड़े की ही होती है।