भोपाल….

लम्बे समय तक रासायनिक खेती करने के बाद जैविक खेती की ओर बढ़ना बहुत मुश्किल होता है लेकिन उज्जैन के शंकरपुर के किसान ईश्वर सिंह डोडिया ने इसे आसान कर दिखाया। इसके लिए उन्होंने देशी तकनीक व परंपरागत तरीके अपनाए और लगातार नवाचार किए। अब वे दूसरे किसानों को भी जैविक खेती और लोगों को जैविक उत्पादों से लोगों को जोड़ रहे हैं।
ईश्वर सिंह ने बताया- मेरे पास खेती की ढाई बीघा जमीन है। कैमिकल के प्रयोग से जमीन एक समय तक उपज देती है, फिर बंजर हो जाती है। मैंने कैमिकल व फर्टिलाइजर के दुष्परिणामों को जब समझा तो ठाना कि जैविक खेती ही करूंगा। वर्ष 2013 में शुरुआत की तब मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं जानता था।
मैंने सुभाष पालेकर पद्धति (शून्य बजट प्राकृतिक खेती) की जानकारी जुटाई, उसे अपनाया। शुरुआत में बाजार से जैविक उत्पाद खरीदे, फिर धीरे-धीरे गाय आधारित खेती शुरू की। पौधों को पोषण देने के लिए खट्टी छाछ का प्रयोग करना और जीवामृत बनाना शुरू किया। जीवामृत बनाने के लिए 10 किलो गोबर, 8-10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो बेसन, 2 किलो गुड़ और आधा किलो बढ़कर झाड़ के नीचे की मिट्टी लेता हूं।
इससे 48 घंटे में जीवामृत तैयार हो जाता है। इसका छिड़काव भी कर सकते हैं और सिंचाई के साथ भी फसल में दे सकते हैं। इससे आवश्यक पोषक तत्व मिल जाते हैं। मैं अहमदाबाद की गिर गोशाला का गोकृपा अमृतम् भी काम में लेता हूं, जिसमें 100 से ज्यादा लाभदायक बैक्टीरिया होते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली के वैज्ञानिक का बनाया वेस्ट-डी कंपोजर भी इस्तेमाल करता हूं।
गोबर के उपले की राख को कीटनाशक के रूप में काम लेता हूं, जिससे पौधों को ऑक्सीजन और रॉक फॉस्फेट मिलती है, कीट नहीं लगते। डोडिया का कहना है- मुझे जैविक खेती से सालाना लगभग 12 लाख रुपए की आय हो रही है। मैंने खेत की फेंसिंग करवाकर मेड़ पर फलदार पेड़ जैसे जामफल, सीताफल सहित नींबू, सहजन आदि के पेड़ लगाए हैं।
हल्दी, धनिया, अदरक, गाजर और छांव में होने वाली फसलें भी बोता हूं। टामाटर, प्याज, गोभी, शिमला मिर्च, आलू, मिर्च जैसी कुछ सब्जियां भी उगाता हूं। यह देखकर दूसरे किसान भी जैविक खेती की ओर प्रेरित हो रहे हैं। क्योंकि जैविक फसलों के दाम किसान खुद तय करता है।