इंदौर….
इंदौर की तरनजीत कौर भाटिया ने अब तक 52 बार रक्त दान (ब्लड डोनेट) किया है। वो कहती हैं कि जब 18 साल पहले उनकी डिलीवरी (बच्चे के जन्म) का समय आया था, तब उन्हें खून की बहुत जरूरत थी। हालत गंभीर थी और उनके पति खून के लिए बहुत भागदौड़ करते रहे। काफी मुश्किल से खून मिला और ऑपरेशन से बेटा पैदा हुआ। उस दिन के बाद तरनजीत ने ठान लिया कि जब भी वह स्वस्थ होंगी, तो दूसरों की जान बचाने के लिए रक्त दान करेंगी
2007 से कर रही ब्लड डोनेट….
तरनजीत बताती हैं कि 2006 में उनका परिवार निमाड़ से इंदौर शिफ्ट हुआ था। अक्टूबर में उनकी डिलीवरी होनी थी। डॉक्टरों ने पहले ही बता दिया था कि सर्जरी के दौरान खून की जरूरत पड़ेगी। उस समय न मोबाइल, न सोशल मीडिया था। खून के लिए रिश्तेदारों और अस्पतालों में फोन करना पड़ा।
तब उन्होंने महसूस किया कि अगर खून वक्त पर ना मिले तो हालात कितने खराब हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने 2007 से ब्लड डोनेट करना शुरू किया।
महिलाओं के लिए आसान नहीं ब्लड डोनेट करना….
तरनजीत कहती हैं कि महिलाएं ब्लड डोनेट करने से डरती हैं। उन्हें लगता है कि इससे कमजोरी आ जाएगी, पोषक तत्व कम हो जाएंगे या वे बीमार पड़ जाएंगी। लेकिन उन्होंने खुद को हमेशा फिट रखा और हीमोग्लोबिन लेवल भी अच्छा रहा, इसलिए बिना किसी परेशानी के वे नियमित ब्लड डोनेट करती हैं।
आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं द्वारा ब्लड डोनेट करने का प्रतिशत सिर्फ 5 से 8% है। यह संख्या बहुत कम है। इसका कारण महिलाओं की शारीरिक स्थिति, हीमोग्लोबिन की कमी, पीरियड्स, डिलीवरी और भ्रांतियां हैं।
कोरोना काल में भी नहीं रुका सेवाभाव….
कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी जब लोग घरों से बाहर निकलने से डर रहे थे, तरनजीत ने चोइथराम अस्पताल में ब्लड डोनेट किया। उस समय उन्होंने पुलिस को मेडिकल फाइल दिखाकर रास्ता तय किया और समय पर मरीज की मदद की।
अब बेटा भी मां के रास्ते पर….
तरनजीत का बेटा हरमन, जिसकी डिलीवरी के समय यह संघर्ष हुआ था, अब 18 साल का हो चुका है और दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है। मां की प्रेरणा से उसने भी अब तक दो बार ब्लड डोनेट किया है और आगे भी साल में चार बार रक्तदान करने का संकल्प लिया है।
सेवा में नंबर नहीं, भावना मायने रखती है….
तरनजीत का मानना है कि सेवा में पहला या दूसरा कौन है, यह मायने नहीं रखता। वह 18 साल से अलग-अलग अस्पतालों और सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं, लेकिन उन्हें अब तक कोई ऐसी महिला नहीं मिली जो 50 बार से ज्यादा ब्लड डोनेट कर चुकी हो। उनका दावा है कि मध्यप्रदेश में वह पहली महिला हैं, जिन्होंने 50 से ज्यादा बार रक्तदान किया है।
जानिए महिलाएं क्यों नहीं कर पातीं ज्यादा ब्लड डोनेट…?
एमवाय हॉस्पिटल के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. अशोक यादव बताते हैं कि रोज एमवायएच और उससे जुड़े अस्पतालों में 150-200 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। हालांकि ब्लड डोनेट करने वालों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। इसकी वजह ये है कि,
- ब्लड डोनेट करने के लिए हीमोग्लोबिन 12.5 होना जरूरी है, जो कई महिलाओं में नहीं होता।
- महिलाओं की डाइट अक्सर कमजोर होती है।
- मासिक धर्म और डिलीवरी के दौरान खून की कमी हो जाती है।
- कुछ महिलाओं को यह भ्रांति होती है कि ब्लड डोनेट करने से वे बीमार हो जाएंगी।
सरकारी रिकॉर्ड (ई-रक्तकोष) के अनुसार अधिकतर महिलाएं 15–20 बार से ज्यादा ब्लड डोनेट नहीं कर पातीं।